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मुस्लिम प्रोफेसरों की कामयाबी खटक रही

🖋️पत्रकार आदिल सईद

इंदौर – गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल और प्रोफेसर पर जो आरोप लगाकर उन्हें हटाया गया है उस आरोप की तहकीक करने पर चौंकाने वाला खुलासा होता है और इससे यह भी पता चलता है कि इन प्रोफेसरों को अपनी ईमानदारी और लगन से पढ़ाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है एक बात और सामने आई है कि इन प्रोफेसरों के पक्ष में सैकड़ों छात्र हैं लेकिन उन्हें सामने नहीं आने दिया जा रहा है।
सरकारी ला कालेज के प्रिंसिपल ईमान रहमान को यह कहकर सस्पेंड कर दिया गया कि उन्होंने अपनी लाइब्रेरी में वह किताब रखी है जिसमें हिंदुत्व के खिलाफ कुछ बातें लिखी हैं हालांकि पहली नजर में ही यह आरोप बेबुनियाद हैं क्योंकि किताब जब रखी गई थी उस वक्त वह प्रिंसिपल नहीं थे और वैसे भी प्रिंसिपल की जिम्मेदारी नहीं बनती क्योंकि सरकारी नियम के मुताबिक साल में एक बार प्रोफेसर किताबों की रिक्रूटमेंट करते हैं और इस रिकमेंड के हिसाब से ही कॉलेज में किताबें भुलाई जाती हैं इस हिसाब से टोरी कमेंट करने वाले प्रोफेसर की जिम्मेदारी बनती है कि उन्होंने किताब क्यों बुलाई बहराल जब पूरे मामले की तहकीकात होती है तो पता चलता है कि मामला यह नहीं था असल में तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और उसकी मात्र संस्था RSS को यह कर रहा था कि एक ही कॉलेज में 5 मुसलमान प्रोफेसर कैसे काम कर रहे हैं और वह भी ऐसे प्रोफेसर जिनके आगे पीछे छात्र हमेशा लगे रहते हैं वजह यह थी कि यह प्रोफेसर अपना काम बहुत ईमानदारी से कर रहे थे और इन की क्लास में छात्रों की भीड़ लगी रहती थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब पूरा मामला उछाला गया तो सैकड़ों छात्र कॉलेज पहुंच गए और वह प्रिंसिपल के अलावा इन प्रोफेसरों के पक्ष में खड़े हो गए थे लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने उन छात्रों को धमकाया यहां तक कि जब भोपाल से जांच कमेटी आई तो उनके सामने बयान भी नहीं लेने दिया गया लेकिन लाकर छात्र होने की वजह से कानून कायदे अच्छी तरह समझते थे उन्होंने मुख्यमंत्री से इस मामले की लिखित शिकायत भी की और वह सब प्रोफेसरों के साथ खड़े नजर आए थे हकीकत में यह भी पता चला कि प्रोफेसर अपने काम में इतने ईमानदार थी कि किसी भी छात्र को अनुचित फायदा नहीं लेने देना चाहते थे इसके अलावा इन प्रोफेसरों को कॉलेज में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली थी जैसे नेक का दौरा कराने की जिम्मेदारी मूट कोर्ट लगाने की जिम्मेदारी यह दोनों काम अक्सर प्रोफेसरों को परेशान करते हैं लेकिन यह प्रोफेसर इन कामों को बखूबी अंजाम दे रहे थे और फिर जब छात्रों के बीच प्रोफेसर प्रसिद्ध हो गए तो इनसे तकलीफ जाहिर की थी।

पहले लव जिहाद में उलझाने की कोशिश की
पूरे मामले में तीरथ करने वाली बात यह है कि शुरू में लव जिहाद के इंगल पर आंदोलन चलाया जा रहा था लेकिन फिर भी यह मुद्दा अचानक से गायब कर दिया गया जब यह मुद्दा उठाने की कोशिश की जा रही थी तो एक छात्रा ने मीडिया के सामने आकर कहा भी था कि हमें व्हाट्सएप पर मैसेज किए जाते हैं लेकिन बस यही पर इनका षड्यंत्र फेल हो गया क्योंकि सवाल यह खड़ा होता कि अगर व्हाट्सएप पर कोई भद्दा मैसेज भेजा गया है तो उसका सबूत दीजिए और यह सबूत दे नहीं पा रहे थे ऐसे में उन्होंने आनन-फानन में लव जिहाद का मुद्दा गायब कर दिया।

हटाने का बहाना चाहिए था
असल में किताब को ही बहुत बड़ा मुद्दा है नहीं लेकिन इन प्रोफेसरों को हटाने का बहाना ढूंढा जा रहा था और वह बहाना मिल नहीं रहा था इसका पता इसी बात से चलता है कि मान लो अगर किताब में कोई आपत्तिजनक बात थी और उसकी जिम्मेदारी प्रिंसिपल पर बनती है तो भी प्रोफेसरों को हटाने की तो कोई तो बनता ही नहीं है और हद तो यह है कि नियम से परे जाकर वाले आउट किया गया है क्योंकि इन प्रोफेसरों की नियुक्ति सेल्फ फाइनेंस के जरिए हुई है और सेल्फ फाइनेंस के नियमों के मुताबिक जब तक कोई स्थाई प्रोफ़ेसर नहीं आ जाता इन्हें हटाया नहीं जा सकता था और सरकार की पॉलिसी है कि सेल्फ का फाइनेंस को में स्थाई प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं करती है ऐसे में पालन आउट बनता नहीं है और अगर हटाए गए प्रोफेसर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक कोर्ट चले जाते हैं तो उनकी बहाली यकीनन है लेकिन यहां पूरी तौर पर उन्हें हटा दिया गय।

सिर्फ एबीवीपी ने ही दिए बयान
भोपाल से जो जांच समिति आई थी उसके सामने सभी छात्रों के बयान नहीं होने दिए गए सैकड़ों छात्र जो प्रोफेसरों के पक्ष में बयान देने के लिए कालेज पहुंचे थे लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने उन्हें जांच समिति तक पहुंचने ही नहीं दिया और अपने ही कार्यकर्ताओं को बयान देने पहुंचाया और उन कार्यकर्ताओं ने रिटेल हटाए बयान दिए इसको लेकर छात्रों ने आपत्ति भी ली लेकिन उन्हें धमकाया गया।

जिसकी मदद की उसी ने निपटाया
सूत्रों का कहना है कि एबीवीपी के जिस छात्र नेता को प्रिंसिपल रहमान मदद की उसी ने उनके खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दिया सूत्रों का यह भी कहना है कि जिन छात्र नेताओं ने आंदोलन खड़ा किया है वह फेल भी हो चुके हैं और वह काले से अनुचित लाभ लेना चाहते थे इसी मामले को लेकर कालेज के स्पोर्ट्स अधिकारी से उनका विवाद भी हो चुका था।

दो को बचा लिया
जिस तरह से शुरू में इस मामले को लव जिहाद का एंगल दिया फिर किताब का एंगल पकड़ा उसी दौरान दो उन प्रोफेसरों के नाम भी इस मामले में जोड़े गए थे जो मुस्लिम नहीं थे लेकिन बाद में इस मामले में से उन दो प्रोफेसरों का नाम सिरे से गायब कर दिया गया सूत्रों का कहना है कि वह दो प्रोफेसर अनुसूचित जाति जनजाति समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और ए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नादानी की वजह से सरकार अनुसूचित जाति जनजाति के प्रोफेसरों पर कार्रवाई करके चुनाव में नुकसान नहीं उठाना चाहती थी इसलिए उन दोनों प्रोफेसरों का नाम सिरे से ही गायब कर दिया गया जबकि शुरुआत में उनका नाम भी सामने आ रहा था और बलि का बकरा मुस्लिम प्रोफेसरों को बनाया गया है।

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